दास्तां - ए - नादाँ
शिव के मस्तक शव की धूली ये धरा श्मशान है / खेलो रे खेलो रंगों की होरी ये धरा श्मशान है ...!!
शुक्रवार, 27 जुलाई 2018
फलसफे ... !!
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शुक्रवार, 20 जुलाई 2018
बन्दे .... !!
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बुधवार, 18 जुलाई 2018
रविवार, 13 अगस्त 2017
श्रद्धांजलि - गोरखपुर में स्वधा हुए नन्हीं जानों को
(Pic Source:Express Photos by Vishal Srivastav; The Indian Express)
मैं और कुछ कर सकता हूँ या नहीं, बच्चों मुझे यह तो सचमुच नहीं पता ! कभी न सोचनें की कोशिस की ना कभी समझने की ! बस अपनी आत्मा को अपने पेट के नीचे दबा कर सोता रहा हूँ ! कल भी, आज भी और शायद कल भी !
पर आपकी मृत्यु उपरांत ही सही आपको आपकी प्रतिष्ठा दो दे ही सकता हूँ !
आपके जीवन को प्रतिष्ठा न दे सका, क्षमा मांगने योग्य भी खुद को नहीं समझ पा रहा !
मौत ने फुस – फुस
आकर पूछा
आए क्यों तुम
घर से बाहर ..... ??
मौत हूँ मैं, ले जाऊंगा
अपने संग, मैं उस द्वारे ....!!!
जान हो तुम तो
प्यारे - प्यारे
कुलबुल - चुलबुल
जग के तारे ........ !!
रो रहे हैं , चुप – चुप अब्बा
भर किलक जा, माँ के आँचल .... !!!
जा - जा मुन्ने, जा रे सोना
मुझसे ना होगा, ना - ना होगा ....... !!
दम फुला कर कर
धीरे – धीरे
आस लगा कर
नन्हे बोले ...... !!
ये कहाँ था रे
मुझको भेजा ?
लोभ की गगरी ढोते – फिरते
खुद में जीते, खुद में मरते
ये भला हैं क्या, बोलो तो मुझको
नोच रहे हैं जो, खुद ही खुद को
इंसान ये तो, ले चल मुझको ...... !!
मौत है तू, तेरा क्या है,
सांस थमी अब, ले चल मुझको ....!!!
मौत ने फुस – फुस
फिर ये बोला
चल रे मुन्ने,
मेरे प्यारे ..... !!
खेलेंगे हम खेल सुहाने ................. !!!!!
#GorakhpurTragedy
उत्पल कान्त मिश्र “नादाँ”
मुंबई
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बुधवार, 3 मई 2017
क्षणिका - हलफ़नामा
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मंगलवार, 10 जनवरी 2017
मेरी नदी
(Pic from http://pixabay.com)
जीवन की उत्ताल तरंगें
बहती हरदम उठ – गिर करके
इस तट पर मैं मेरा बैठा
उस तट पर है निर्वाण खड़ा !!
यह तट है इह जीवन मेरा
है उस तट पर ये ध्यान टिका
भाव समंद की लहरों पर मैं
हूँ तरता नित इक नाव बना !!
कल – कल नदिया कहती मुझसे
मैल न दे तू मल सा मुझमें
पालन – तारण सब मैं तेरा
उस तट की नैया ये लहरें !!
जन – मन, संगी – साथी सारे
संग रहते हैं, बन से मन में
दूजा जाने! ये भंवर है
बसता तेरा राम सकल में !!
वह तट ही है तेरा जिसमें
पग ये हों तेरे धीर धरे
पीर पराई जाने जब तू
इस तट खुद तर आयेगा रे !!
इस तट खुद तर आयेगा रे !!
उत्पल कान्त मिश्र “नादां’”
मुंबई
जनवरी १०, २०१७
जीवन की उत्ताल तरंगें
बहती हरदम उठ – गिर करके
इस तट पर मैं मेरा बैठा
उस तट पर है निर्वाण खड़ा !!
यह तट है इह जीवन मेरा
है उस तट पर ये ध्यान टिका
भाव समंद की लहरों पर मैं
हूँ तरता नित इक नाव बना !!
कल – कल नदिया कहती मुझसे
मैल न दे तू मल सा मुझमें
पालन – तारण सब मैं तेरा
उस तट की नैया ये लहरें !!
जन – मन, संगी – साथी सारे
संग रहते हैं, बन से मन में
दूजा जाने! ये भंवर है
बसता तेरा राम सकल में !!
वह तट ही है तेरा जिसमें
पग ये हों तेरे धीर धरे
पीर पराई जाने जब तू
इस तट खुद तर आयेगा रे !!
इस तट खुद तर आयेगा रे !!
उत्पल कान्त मिश्र “नादां’”
मुंबई
जनवरी १०, २०१७
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बुधवार, 28 दिसंबर 2016
मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016
मंगलवार, 26 जुलाई 2016
अरी बावरी नयना ताके
उत्पल कान्त मिश्र "नादां"
मुंबई
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