बुधवार, 19 मार्च 2014

हमने पी है अभी है शराब बाकी





हमने पी है अभी है शराब बाकी 
होना क्या है हबीबों खराब बाकी …… !!

बादाकश (१)  हो उठाए सवाल ढेरों 
आना बस है हया का जबाब बाकी…… !!

लाया शीशा, मुसल्ला (२), कि साथ ए रब 
तेरा मेरा रहा ये हिसाब बाकी ……!!  

घमज़ाह (३), ज़ीनत (४), करिश्मा, यसार (५)  हैं 
जिस्म - ओ - जां सब, रहा क्या, तुराब (६) बाकी …!!

देखा सबने ख़जाना हिसाब करके 
मेरा बस है फ़टा इक जुराब बाकी …!!

यूं होता मैं कहानी जनाब प्यारी 
"नादाँ" होता, मगर है, सराब (७) बाकी …!! 

उत्पल कान्त मिश्र "नादाँ"
मार्च १९, २०१४ 
०२:५३ प्रातः  

(१) बादाकश: नशे में  धुत्त 
(२) मुसल्ला: नमाज़ पढ़ने की  चटाई  
(३) घमज़ाह: शोख़ी 
(४) ज़ीनत: खूबसूरती  
(५) यसार : ऐश्वर्य 
(६) तुराब: मिट्टी, धरती   
(७) सराब: भ्रम, मृगमरीचिका