दास्तां - ए - नादाँ
शिव के मस्तक शव की धूली ये धरा श्मशान है / खेलो रे खेलो रंगों की होरी ये धरा श्मशान है ...!!
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चंद ढलते ख़याल
परिचय
समर्पण
चंद ढलते ख़याल
कोई गुफ़्तगू न किया करो , कोई मशविरा ना किया करो
सन्नाटों से है भरा सहर , कोई तजकिरा ना किया करो .............. !!
उत्पल कान्त मिश्र "नादाँ"
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