चंद ढलते ख़याल

कोई  गुफ़्तगू न  किया  करो , कोई  मशविरा  ना  किया  करो
सन्नाटों  से  है  भरा सहर , कोई  तजकिरा  ना  किया  करो  .............. !!

उत्पल कान्त मिश्र "नादाँ"