मंगलवार, 27 अगस्त 2013

अरी बावरी नयना

(Pic From Google)


अरी बावरी नयना ताक़े 
काहे सपने मधुबन के ?
दिवा - रात्रि का शून्य काल है 
कैसे सपने चितवन के ?


अरी बावरी नयना ताक़े 
काहे सपने मधुबन के ?


भूख लगी , माँगूँ या छीनूँ 
क्षुधा सामरिक कैसी ये ?
कुसुम - लता में लवण कहाँ अब 
कैसा जीवन, जीवन है ये ?


अरी बावरी नयना ताक़े 
काहे सपने मधुबन के ?


तन पे कपड़ा, मन है नंगा 
लाशों पे होता झगड़ा ? 
बिखर गया सब कुछ अब तो भी 
है तो है, क्यों ये झगड़ा ?


अरी बावरी नयना ताक़े 
काहे सपने मधुबन के ?


घटा - घनेरी गरज - गरज बस 
बादल  बरस ही न पायें 
नीर नयन में  बसते इतने 
सावन पानी क्यों पायें ?


अरी बावरी नयना ताक़े 
काहे सपने मधुबन के ?
दिवा - रात्रि का शून्य काल है 
कैसे सपने चितवन के ?


उत्पल कान्त   मिश्र "नादाँ "




मंगलवार, 26 मार्च 2013

रंगरेज





ऐ रंगरेज 
आसमां में  इन्द्रधनुष की 
एक छवी सी देखी थी 
पुलकित मन फिर सोच रहा 
इन रंगों का क्या तू बाज़ीगर 
ऐ रंगरेज  !

देखो ! मुझमें भी हैं रंग 
पीत हुआ है मेरा बचपन 
जब माँ की लोरी सुनती हूँ 
और बाबू की  गोदी होती हूँ 
ऐ रंगरेज !

और है नीला मेरा अल्हड़पन 
जब मैं तितली सी उडती हूँ 
इत - उत दौड़ी भागी फिरती हूँ 
मैं दादी की नील परी  हूँ 
ऐ रंगरेज !

देख ! गुलाबी मेरा यौवन 
मैं खवाबों की अमराई हूँ 
उनकी आँखों को भायी  हूँ 
इस धरती की  लाल परी  हूँ 
ऐ रंगरेज !

ऐ रंगरेज 
पर मुझमें काला भी है 
जो तेरा धनुष  नहीं है 
इन बातों की बस पाती हूँ 
पर ये सब जीना चाहे हूँ 
ऐ रंगरेज !

ऐ रंगरेज 
हर लो ना मेरा कला रंग 
विनती कर मैं रोई हूँ 
मैं हरे को ललचाई  हूँ
दे दो ना ! मैं तेरे द्वारे आई हूँ 
ऐ रंगरेज !

ऐ रंगरेज 
बोलो ना .... !!
क्या जी लूं मैं फिर 
बचपन के वो बीते पल ?
ऐ रंगरेज ....... !!

........... उत्पल कान्त मिश्र "नादाँ "