मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

कल्पना

मिलन धरा का आसमान से

मानो हो रहा हो क्षितिज पर

चुम्बन लेती जब वासंती बयार

अलिकुल ले उड़ते हैं सन्देश

सावन को कहते गाओ राग मल्हार

कितनी मनोरम है ये धरती

दुःख को ढंकती, सुख से छाती

प्राणों की स्निग्ध थाती .......... !!


उत्पल कान्त मिश्र

दिल्ली ; १७.०२.२००९

१५:५८