मिलन धरा का आसमान से
मानो हो रहा हो क्षितिज पर
चुम्बन लेती जब वासंती बयार
अलिकुल ले उड़ते हैं सन्देश
सावन को कहते गाओ राग मल्हार
कितनी मनोरम है ये धरती
दुःख को ढंकती, सुख से छाती
प्राणों की स्निग्ध थाती .......... !!
उत्पल कान्त मिश्र
दिल्ली ; १७.०२.२००९
१५:५८
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