ऐ रंगरेज
आसमां में इन्द्रधनुष की
एक छवी सी देखी थी
पुलकित मन फिर सोच रहा
इन रंगों का क्या तू बाज़ीगर
ऐ रंगरेज !
देखो ! मुझमें भी हैं रंग
पीत हुआ है मेरा बचपन
जब माँ की लोरी सुनती हूँ
और बाबू की गोदी होती हूँ
ऐ रंगरेज !
और है नीला मेरा अल्हड़पन
जब मैं तितली सी उडती हूँ
इत - उत दौड़ी भागी फिरती हूँ
मैं दादी की नील परी हूँ
ऐ रंगरेज !
देख ! गुलाबी मेरा यौवन
मैं खवाबों की अमराई हूँ
उनकी आँखों को भायी हूँ
इस धरती की लाल परी हूँ
ऐ रंगरेज !
ऐ रंगरेज
पर मुझमें काला भी है
जो तेरा धनुष नहीं है
इन बातों की बस पाती हूँ
पर ये सब जीना चाहे हूँ
ऐ रंगरेज !
ऐ रंगरेज
हर लो ना मेरा कला रंग
विनती कर मैं रोई हूँ
मैं हरे को ललचाई हूँ
दे दो ना ! मैं तेरे द्वारे आई हूँ
ऐ रंगरेज !
ऐ रंगरेज
बोलो ना .... !!
क्या जी लूं मैं फिर
बचपन के वो बीते पल ?
ऐ रंगरेज ....... !!
........... उत्पल कान्त मिश्र "नादाँ "
2 टिप्पणियां:
Bahut pasand aayi ye kavita!
:)
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