दास्तां - ए - नादाँ
शिव के मस्तक शव की धूली ये धरा श्मशान है / खेलो रे खेलो रंगों की होरी ये धरा श्मशान है ...!!
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चंद ढलते ख़याल
परिचय
समर्पण
शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015
निःशब्दों की व्याकुलता
शब्दों की स्तब्धता
निःशब्दों की व्याकुलता
उफ़
जीवन की यह आकुलता
चीत्कार या कि व्यवहारिकता ll
.......... उत्पल कांत मिश्र "नादाँ"
बुधवार, 22 अप्रैल 2015
क्या माँगूँ मैं हाथ पसारी ?
उद्बुद्ध करते तिमिर प्रकाश में
अनगिन वैचारिक श्रृंखलाएँ
यह उद्वेलन शीतल जो कर दे
वह दैदीप्य कहाँ से लायें ll
ज्ञान समंद में उबडुब अज्ञानी
भँवर पार कर ओ अवहारी
बिन गुरु ज्ञान होत नहीं तारी
कि क्या माँगूँ मैं हाथ पसारी ?
…… उत्पल कांत मिश्र "नादाँ"
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