जिधर ले चले चलो इतना बता दो पे
कोई मयखाना वां है कि नेस्त
कोई मयखाना वां है कि नेस्त
सागर - ओ - मीना कि महफ़िल से जो उठा मैं
मेरे सुखन कि जां रहेगी नेस्त
गर मेरी जिंदगी रवाही रहनें दो पैमाना आगे
भर आया अभी सोज - ऐ - निहां नेस्त
क्या दिखाए बिना मय मजा मंजर का नेस्त
पीता चलूँ फिर सफर बेमजा नेस्त !!!
उत्पल कान्त मिश्रा "नादां"
दिल्ली; जुलाई १६; २००८
२१ :३७ PM