कैसी कैसी बातें ले हम बैठे
रात तन्हा थी कि दिन भी खो बैठे
मान ले ऐ दिल के राही हमसफ़र
यूँ न तुम थे, यूँ न हम थे, कि था सहर l
ऐसी वैसी यादें ले क्यों बैठे
चैन दिल का यूँ लुटा हम बैठे
रौशनी का दिया हम बुझा चल पड़े
देखने को सितारे कि अब हैं खड़े l
जैसे तैसे जिंदगी चलती रही
उठती गिरती और संभलती रही
संग कभी तन्हा कभी चलते रहें
इक जहर सा ये सफर है कि क्या कहें ?
कैसी कैसी बातें ले हम बैठे
छोटा सा ये सफर और हम बैठे
आती जाती साँसों के ए रहगुज़र
यहाँ साथ पल का आ कि कर ले बसर ll
उत्पल कान्त मिश्र "नादाँ"
२६/०५/२०१५
मुंबई, १४:४०
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