दास्तां - ए - नादाँ
शिव के मस्तक शव की धूली ये धरा श्मशान है / खेलो रे खेलो रंगों की होरी ये धरा श्मशान है ...!!
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चंद ढलते ख़याल
परिचय
समर्पण
मंगलवार, 26 जुलाई 2016
अरी बावरी नयना ताके
उत्पल कान्त मिश्र "नादां"
मुंबई
सोमवार, 11 जुलाई 2016
अभिव्यन्जनाएं
दो शब्द ....
जीवन, मृत्यु
मध्य समस्त
अभिव्यन्जनाएं
ज्ञात, अज्ञात
गद्य, पद्य
ll
उत्पल कान्त मिश्र
मुंबई
११.०७.२०१६
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