दास्तां - ए - नादाँ
शिव के मस्तक शव की धूली ये धरा श्मशान है / खेलो रे खेलो रंगों की होरी ये धरा श्मशान है ...!!
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चंद ढलते ख़याल
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बुधवार, 3 मई 2017
क्षणिका - हलफ़नामा
(Pic from http://pixabay.com)
इक हलफ़नामा मेरा भी
चिराग़ गुल हुआ था
जिस दिन, उस दिन
मैं बैठा था बुतखाने में
रोशन - ए - बाग़ - ए - इश्क़ रोज़
बैठा था मैं मयखाने में ... !!
उत्पल कान्त मिश्र "नादाँ"
मुंबई
अप्रैल १७, २०१७
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