रविवार, 13 अगस्त 2017

श्रद्धांजलि - गोरखपुर में स्वधा हुए नन्हीं जानों को

(Pic Source:Express Photos by Vishal Srivastav; The Indian Express)


मैं और कुछ कर सकता हूँ या नहीं, बच्चों मुझे यह तो सचमुच नहीं पता ! कभी न सोचनें की कोशिस की ना कभी समझने की ! बस अपनी आत्मा को अपने पेट के नीचे दबा कर सोता रहा हूँ ! कल भी, आज भी और शायद कल भी !

पर आपकी मृत्यु उपरांत ही सही आपको आपकी प्रतिष्ठा दो दे ही सकता हूँ !

आपके जीवन को प्रतिष्ठा न दे सका, क्षमा मांगने योग्य भी खुद को नहीं समझ पा रहा !


मौत ने फुस – फुस
आकर पूछा
आए क्यों तुम
घर से बाहर ..... ??

मौत हूँ मैं, ले जाऊंगा
अपने संग, मैं उस द्वारे ....!!!

जान हो तुम तो
प्यारे - प्यारे
कुलबुल - चुलबुल
जग के तारे ........ !!

रो रहे हैं , चुप – चुप अब्बा
भर किलक जा, माँ के आँचल .... !!!

जा - जा मुन्ने, जा रे सोना
मुझसे ना होगा, ना - ना होगा ....... !!

दम फुला कर कर
धीरे – धीरे
आस लगा कर
नन्हे बोले ...... !!

ये कहाँ था रे
मुझको भेजा ?
लोभ की गगरी ढोते – फिरते
खुद में जीते, खुद में मरते
ये भला हैं क्या, बोलो तो मुझको
नोच रहे हैं जो, खुद ही खुद को
इंसान ये तो, ले चल मुझको ...... !!

मौत है तू, तेरा क्या है,
सांस थमी अब, ले चल मुझको ....!!!

मौत ने फुस – फुस
फिर ये बोला
चल रे मुन्ने,
मेरे प्यारे ..... !!



खेलेंगे हम खेल सुहाने ................. !!!!!

#GorakhpurTragedy

उत्पल कान्त मिश्र “नादाँ”
मुंबई

1 टिप्पणी:

Deepti Agarwal ने कहा…

ये भला हैं क्या, बोलो तो मुझको
नोच रहे हैं जो, खुद ही खुद को
इंसान ये त

:(