रविवार, 2 अक्तूबर 2011

चलो, कुछ लिखते हैं



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चलो, काग़ज़कलम निकालो
कुछ लिखना है
सदियों से लिखी जा रही है
बातें ……….
हम भी लिखते हैं
कागज़ घिसते हैं
कटने दो पेड़ों को
पढनें दो लोगों को
फिर वो कलम उठाएंगे
चश्मे संभालेंगे
और
लग जायेंगे
समीक्षा में , विवेचना में
त्रुटियाँ निकाली जायेंगी
शब्द खोजे जायेंगे
काव्य की हर वो धारा
जो लेखनी में नहीं
वो सब निकाले जायेंगे
बहस होगी , इस्सिलाह होंगे
सब होगा
बस बातें गुम हो जायेंगी

चलो , काग़ज़कलम निकालो
कुछ लिखते हैं …………… !!



उत्पल कान्त मिश्र
मुंबई , सितम्बर १९ , २०११

1 टिप्पणी:

Deepti Agarwal ने कहा…

rightly said.. things stay on paper , discussed n debated.. but no conclusion comes out.