http://www.freedigitalphotos.net/images/view_photog.php?photogid=1256 (Picture By Evgeni Dinev)
लो फिर आज इक ग़ज़ल कहता हूँ
उनकी बात इक दफ़े सुनता हूँ ........... !!
है ये रात फिर बड़ी सी लेकिन
ख़स - ओ - ख़ाक* मैं लिए चलता हूँ .... !!
मैं चुप - चाप ही चला हूँ अबतक
पिन्हा* दर्द को लिए फिरता हूँ ............. !!
हैं बाज़ार में खड़े बन - ठन के
उनके हाल को समझ रोता हूँ ............... !!
देखो तुम कि हो ब'ह़र - ओ - मिसरे*
दिल की बात मैं यहाँ करता हूँ ......... !!
उफ़ ! इस चाँद की ख़लिश को सहना
अपने हाल पे बहुत हंसता हूँ ........... !!
रहने दो कि ढल गयी जां "नादाँ"
बाकी अब न कुछ चलो सोता हूँ ............ !!
उत्पल कान्त मिश्र "नादाँ"
मुंबई, अक्टूबर ४, २०११
* ख़स - ओ - ख़ाक: धूल और राख
पिन्हा: छुपा हुआ
ब'ह़र - ओ - मिसरे: ग़ज़ल का मीटर और उसमें बंधे शेर
2 टिप्पणियां:
हम दिल की बात यहाँ करते हैं-खूबसूरत गज़ल,सुंदर प्रस्तुति...
Shukriyaa Indu Ji
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