मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

दिल की बात मैं यहाँ करता हूँ ......... !!


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लो फिर आज इक ग़ज़ल कहता हूँ
उनकी बात इक दफ़े सुनता हूँ ........... !!

है ये रात फिर बड़ी सी लेकिन
ख़स - ओ - ख़ाक* मैं लिए चलता हूँ .... !!

मैं चुप - चाप ही चला हूँ अबतक
पिन्हा* दर्द को लिए फिरता हूँ ............. !!

हैं बाज़ार में खड़े बन - ठन के
उनके हाल को समझ रोता हूँ ............... !!

देखो तुम कि हो ब'ह़र - ओ - मिसरे*
दिल की बात मैं यहाँ करता हूँ ......... !!

उफ़ ! इस चाँद की ख़लिश को सहना
अपने हाल पे बहुत हंसता हूँ ........... !!

रहने दो कि ढल गयी जां "नादाँ"
बाकी अब न कुछ चलो सोता हूँ ............ !!

उत्पल कान्त मिश्र "नादाँ"
मुंबई, अक्टूबर ४, २०११

* ख़स - ओ - ख़ाक: धूल और राख
पिन्हा: छुपा हुआ
ब'ह़र - ओ - मिसरे: ग़ज़ल का मीटर और उसमें बंधे शेर

2 टिप्‍पणियां:

induravisinghj ने कहा…

हम दिल की बात यहाँ करते हैं-खूबसूरत गज़ल,सुंदर प्रस्तुति...

उत्पल कान्त मिश्रा "नादां" ने कहा…

Shukriyaa Indu Ji