मंगलवार, 15 नवंबर 2011

साजन मोहे पीहर छोड़े चले हैं बिदेस री ....... !!

साजन मोहे पीहर छोड़े चले हैं बिदेस री
सासू रोवे आंसू पोछें, बोले न कछु और री ...... !!

बादर अईहें सावन - भादो करिबो का हम खेल री
अँखियाँ झर - झर अबहीं बरसें, समझें नहीं पीर री ........ !!

रोवत - रोवत अँखियाँ सूजीं, कहैं ना मैं सोयी री
बैरी निंदिया, साजन संग ही, गयी हें बिदेस री ..... !!

चूड़ी - बिंदिया भावे नाहीं लगे सब बिदेह री
कहे पहरूं सोना – चांदी, देखिहें हमका कौन री ....... !!

गाभिन गइया बछिया दीहें ननद कहे देख री
हे पीर अपनी कासे बोलूँ, सखी न संदेस री ....... !!

बाबुल मोसे अँखियाँ मीचें बड़े सब निर्मोह री
बोलो मइया हमका भेजें पिया घर बिदेस री ........ !!

उत्पल कान्त मिश्र "नादाँ"
मुंबई

6 टिप्‍पणियां:

Seema ने कहा…

My God ....itni dukh bhari kavita?Why

उत्पल कान्त मिश्रा "नादां" ने कहा…

Seema Ji !

Dukh bhari hai shayad ! par ye bahut se jeevan ki sacchai bhi hai ! khaskar UP, Bihar jaisai rajyon ke migrants ki ! halaat aisai hi hote hain par jeevan chaltaa rahtaa hai !

mainain us dard ko sirf mahsush kiya aur unhain chand shabd de diye !

Thanks for reading and liking.

Regads

Utpal

amrendra "amar" ने कहा…

रोवत - रोवत अँखियाँ सूजीं, कहैं ना मैं सोयी री
बैरी निंदिया, साजन संग ही, गयी हें बिदेस री ..... !!
kya baat hai utpal ji sari virah vedna udel ker rakh di hai aapne
.bahut hi marmik prastuti.....

Utpal ने कहा…

shukriyaa amrendra ji !

Udan Tashtari ने कहा…

ओह!!! ..आह!

उत्पल कान्त मिश्रा "नादां" ने कहा…

आदरणीय लाल जी !

आभार

सादर