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अरी बावरी नयना ताक़े
काहे सपने मधुबन के ?
दिवा - रात्रि का शून्य काल है
कैसे सपने चितवन के ?
अरी बावरी नयना ताक़े
काहे सपने मधुबन के ?
भूख लगी , माँगूँ या छीनूँ
क्षुधा सामरिक कैसी ये ?
कुसुम - लता में लवण कहाँ अब
कैसा जीवन, जीवन है ये ?
अरी बावरी नयना ताक़े
काहे सपने मधुबन के ?
तन पे कपड़ा, मन है नंगा
लाशों पे होता झगड़ा ?
बिखर गया सब कुछ अब तो भी
है तो है, क्यों ये झगड़ा ?
अरी बावरी नयना ताक़े
काहे सपने मधुबन के ?
घटा - घनेरी गरज - गरज बस
बादल बरस ही न पायें
नीर नयन में बसते इतने
सावन पानी क्यों पायें ?
अरी बावरी नयना ताक़े
काहे सपने मधुबन के ?
दिवा - रात्रि का शून्य काल है
कैसे सपने चितवन के ?
उत्पल कान्त मिश्र "नादाँ "
2 टिप्पणियां:
dil ko choo gayi ye rachna..
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