मंगलवार, 27 अगस्त 2013

अरी बावरी नयना

(Pic From Google)


अरी बावरी नयना ताक़े 
काहे सपने मधुबन के ?
दिवा - रात्रि का शून्य काल है 
कैसे सपने चितवन के ?


अरी बावरी नयना ताक़े 
काहे सपने मधुबन के ?


भूख लगी , माँगूँ या छीनूँ 
क्षुधा सामरिक कैसी ये ?
कुसुम - लता में लवण कहाँ अब 
कैसा जीवन, जीवन है ये ?


अरी बावरी नयना ताक़े 
काहे सपने मधुबन के ?


तन पे कपड़ा, मन है नंगा 
लाशों पे होता झगड़ा ? 
बिखर गया सब कुछ अब तो भी 
है तो है, क्यों ये झगड़ा ?


अरी बावरी नयना ताक़े 
काहे सपने मधुबन के ?


घटा - घनेरी गरज - गरज बस 
बादल  बरस ही न पायें 
नीर नयन में  बसते इतने 
सावन पानी क्यों पायें ?


अरी बावरी नयना ताक़े 
काहे सपने मधुबन के ?
दिवा - रात्रि का शून्य काल है 
कैसे सपने चितवन के ?


उत्पल कान्त   मिश्र "नादाँ "




2 टिप्‍पणियां:

Deepti Agarwal ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
payal agarwal ने कहा…

dil ko choo gayi ye rachna..