शुक्रवार, 6 जून 2014

अजी सोचिये क्या ग़जब हो गया है



अजी सोचिये क्या ग़जब हो गया है 
खुला आसमाँ था शहर हो   गया है ………………… !!

अजी सोचिये क्या ग़जब हो गया है 

बयारों की सरगम किरणों का छनना 
जँगल था जो सब महल हो गया है। ................ !!

अजी सोचिये क्या ग़जब हो गया है 

उसकी तुतली सी बोली मटकना ठुमकना 
वो नन्हा फरिश्ता आदमी हो गया है  ………… !!

अजी सोचिये क्या ग़जब हो गया है 

मुहल्ले की रौनक संग हँसना और गाना 
वो हिन्दू मुसलमाँ सा कुछ हो गया है …………… !!

अजी सोचिये क्या ग़जब हो गया है 

इन्सां थे आये जहाँ हो गया है 
कभी था ये अपना गुमाँ हो गया है ……… !!

अजी सोचिये क्या ग़जब हो गया है 

उत्पल कान्त मिश्र "नादाँ"
६ जून २०१४ 

4 टिप्‍पणियां:

payal agarwal ने कहा…

Very true..

Utpal Kant Mishra ने कहा…

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