जीवन के इन उपालंभों को
हृद्भास ले मैं चलता हूँ l
इस जीवन की तुरीय संध्या
जब आएगी, मैं फिर आऊँगा l
हे पिता तुम्हारे चुम्बन को
मैं मधुर गात ये संग लाऊँगा ll
उत्पल कान्त मिश्र “नादां”
मुंबई
अक्टूबर २५, २०१६
(पुत्र अथर्व को समर्पित !!)
(Pic: Ramya Rao)
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4 टिप्पणियां:
Just for him. Stable as of now.
happy diwali to all of you
मार्मिक शब्दावली.
Nice post, things explained in details. Thank You.
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