(Pic from http://pixabay.com)
जीवन की उत्ताल तरंगें
बहती हरदम उठ – गिर करके
इस तट पर मैं मेरा बैठा
उस तट पर है निर्वाण खड़ा !!
यह तट है इह जीवन मेरा
है उस तट पर ये ध्यान टिका
भाव समंद की लहरों पर मैं
हूँ तरता नित इक नाव बना !!
कल – कल नदिया कहती मुझसे
मैल न दे तू मल सा मुझमें
पालन – तारण सब मैं तेरा
उस तट की नैया ये लहरें !!
जन – मन, संगी – साथी सारे
संग रहते हैं, बन से मन में
दूजा जाने! ये भंवर है
बसता तेरा राम सकल में !!
वह तट ही है तेरा जिसमें
पग ये हों तेरे धीर धरे
पीर पराई जाने जब तू
इस तट खुद तर आयेगा रे !!
इस तट खुद तर आयेगा रे !!
उत्पल कान्त मिश्र “नादां’”
मुंबई
जनवरी १०, २०१७
जीवन की उत्ताल तरंगें
बहती हरदम उठ – गिर करके
इस तट पर मैं मेरा बैठा
उस तट पर है निर्वाण खड़ा !!
यह तट है इह जीवन मेरा
है उस तट पर ये ध्यान टिका
भाव समंद की लहरों पर मैं
हूँ तरता नित इक नाव बना !!
कल – कल नदिया कहती मुझसे
मैल न दे तू मल सा मुझमें
पालन – तारण सब मैं तेरा
उस तट की नैया ये लहरें !!
जन – मन, संगी – साथी सारे
संग रहते हैं, बन से मन में
दूजा जाने! ये भंवर है
बसता तेरा राम सकल में !!
वह तट ही है तेरा जिसमें
पग ये हों तेरे धीर धरे
पीर पराई जाने जब तू
इस तट खुद तर आयेगा रे !!
इस तट खुद तर आयेगा रे !!
उत्पल कान्त मिश्र “नादां’”
मुंबई
जनवरी १०, २०१७
3 टिप्पणियां:
"पीर पराई जाने जब तू
इस तट खुद तर आयेगा रे !!"
hmm
that's true!
Awesome work.Just wanted to drop a comment and say I am new to your blog and really like what I am reading.Thanks for the share
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