मंगलवार, 5 अगस्त 2008

मेरी प्रियतमा को समर्पित


















प्रियतमे !!!!


प्रियतमे !!!!
याद है मुझको, हर वो पल
जब तुम थी , न थी , न हो
फिरभी तुम मेरा जीवन थी , है , हो ....... !!!!




याद है मुझको , हर वो पल
जब रश्मिरथी की प्रथम किरणों संग
तेरी बोझल पलकों को अपलक देखा करता था
और कोकिला वाणी को सुन प्रमादित होता था
पुलकित ह्रदय ले इस प्राकृत सरोवर का
कलरव का , नियति तांडव का , मैं कृतार्थ होता था ...... !!!!


याद है मुझको , हर वो पल
जब ह्रदय व्यथित ले , शीथल पथिक सा
में भवन आता था , तेरे अंचल को पाता
और स्वर्ण रेखाओं सम भविष्य का
ताना बाना बुन स्वस्थ मन ले सो पता था
और उषा की किरणों के आते यह पथिक फिर
उस अनिश्चित पथ पर युद्ध करनें जाता था .......... !!!!



याद है मुझको , हर वो पल
तेरा मुस्काना , जैसे मेरा जीवन
तेरा इठलाना , जैसे मेरी कल्पना
तेरा गुस्साना , जैसे मेरा काल ग्रास
तेरा रूठना , जैसे कुहरे की धूप
और तेरा मान जाना , मोक्ष सम ...... !!!!



याद है मुझको , हर वो पल
मानो कलि की कालिका
बिछा रही हो हो माया जाल
और चारा सा तेरा अल्हर्पण
मोह पाश में दिग्भ्रमित हुआ सा
उस पथ को जाता था
जहाँ निशा ही दिवा हुई हो
और दिवा है चिर निःशब्द
याद है मुझको , हर वो पल
वो दावानल लील रहा था
मेरे जीवन का जीवन ......... !!!!



याद है मुझको, हर वो पल
वो तेरा मुस्काना, इठलाना,
गुस्साना, रूठना और मान जाना
वो मेरा जीवन था , है , होगा ...... !!!!




याद है मुझको , हर वो पल
और आश लिए नव सूर्य
हर प्रातः मैं देखा करता हूँ ..... !!!!




उत्पल कान्त मिश्र "नादां"
दिल्ली , अगस्त ४ ; 2००८
१७:५७


7 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

याद है मुझको , हर वो पल
जब ह्रदय व्यथित ले , शीथल पथिक सा
bahut sundar.

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अपनी भावनाओं को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।

याद है मुझको , हर वो पल
जब ह्रदय व्यथित ले , शीथल पथिक सा
में भवन आता था , तेरे अंचल को पाता
और स्वर्ण रेखाओं सम भविष्य का
ताना बाना बुन स्वस्थ मन ले सो पता था
और उषा की किरणों के आते यह पथिक फिर
उस अनिश्चित पथ पर युद्ध करनें जाता था .......... !!!!

रंजन गोरखपुरी ने कहा…

बेहद मर्मस्पर्शी रचना! हर पल जैसे प्रेम में अह्लादित होकर लिखी गई हो...

कुछ पंक्तियां जैसे ये बहुत गहरे तक दिल को छू गई...

याद है मुझको , हर वो पल
जब ह्रदय व्यथित ले , शीथल पथिक सा
में भवन आता था , तेरे अंचल को पाता
और स्वर्ण रेखाओं सम भविष्य का
ताना बाना बुन स्वस्थ मन ले सो पता था
और उषा की किरणों के आते यह पथिक फिर
उस अनिश्चित पथ पर युद्ध करनें जाता था .......... !!!!

प्रेम रस में डूबा ये छंद भी अहसास की पराकाष्ठा दर्शाता है...

याद है मुझको , हर वो पल
तेरा मुस्काना , जैसे मेरा जीवन
तेरा इठलाना , जैसे मेरी कल्पना
तेरा गुस्साना , जैसे मेरा काल ग्रास
तेरा रूठना , जैसे कुहरे की धूप
और तेरा मान जाना , मोक्ष सम

आपकी कलम को मेरा कोटि कोटि नमन...

Utpal ने कहा…

Aap sabon ka tahe dil shukriya ... mujh khaksaar ke chitthe ko padnain ka aur meri hausal afzai ka ..... yeh lekhni ko protsahit karti hai



Ranjan Sa'ab

Aap sareekhe aala tareen fankaar ko yeh rachna pasand aayi .... lekhani safal hui

श्रद्धा जैन ने कहा…

याद है मुझको , हर वो पल
जब ह्रदय व्यथित ले , शीथल पथिक सा
में भवन आता था , तेरे अंचल को पाता
और स्वर्ण रेखाओं सम भविष्य का
ताना बाना बुन स्वस्थ मन ले सो पता था
और उषा की किरणों के आते यह पथिक फिर
उस अनिश्चित पथ पर युद्ध करनें जाता

bhaut bahut sunder abhivayakti utpal ji

blogging main aapka sawagat hai

Sunita ने कहा…

WAH........kya shabdon ko tarash kar likha hai.......:)

anil 'Baimil' ने कहा…

behad khoobsoorat ..............