शनिवार, 8 अक्तूबर 2011

जज्बे



http://www.freedigitalphotos.net/images/view_photog.php?photogid=172 (Pic By: Maggie Smith)
















घर की छत पर खड़े
सर्दियों की धूप सेंकते
सिगरेटे के छल्लों में
दिल का गुबार खोजते
आती - जाती गाड़ियों को
देखता, सोचता था मैं .................. !!

इस गुनगुनी धूप में
कैसी नरमी सी है
जो हड्डियों को सहलाती है
जैसे माँ का आँचल हो
जो दिल को सहलाता था

अचानक याद आई
वो सारी बातें
माँ की गोद, गाँव की हरियाली
और दूसरी सिगरेटे जलाते हुए
देखनें लगा मैं,
कंक्रीट का जंगल
दिल के गुबार नें कहा
कहाँ गया वो दिल
जो बसता था
हर गली, हर जज्बे में
यहाँ तो दिलों में भी
कंक्रीट का जंगल है

चाय की चुस्की से
व्हिस्की की बोतल तक
खोजता रहा दिल का सकून
और दिल को बहलाने को आखिर
खड़ा हो गया मैं
छत की धूप में
और देखनें लगा
आती - जाती गाड़ियाँ

होठों पे दबा सिगरेटे
और मुंह से निकलता धुआं ............... !!

उत्पल कान्त मिश्र
मुंबई



3 टिप्‍पणियां:

Deepti Agarwal ने कहा…

iss kankareet ke jungle ke beech kabhi kabhi jhaank jaati hai hariyaali aur phoolon ki muskarahat bhi.. :)

on a lighter note :-Bus zaroori yeh hai ke Cigarate ka challe kum bane to shayad kankreet ke beech se jhankti hariyali bhi sukoon de de.. :)

varsha ने कहा…

इस गुनगुनी धूप में
कैसी नरमी सी है
जो हड्डियों को सहलाती है
जैसे माँ का आँचल हो
जो दिल को सहलाता था


sach dilon mein bhee Concrete ke Jungle hain!!
Likhte rahiye!!

उत्पल कान्त मिश्रा "नादां" ने कहा…

Jaroor Varsha Ji ... Kosis karte rahenge.

Shukriyaa