(Pic by my elder brother; Pranav Mishra)
यूँ कि बस पीता चला ग़ालिब सहर* तक
तिश्नकामी* ही मिली फिर सर - बसर तक ...... !!!
देखिये सब है रवायत - ओ - अनासिर*
नींद में ही कट चली मंजिल शहर तक .......... !!!
पेंच - ओ - ख़म*, हुस्न , उल्फत और मुहब्बत
जुल्फ यह अपनी न यूँ झटको कमर तक ....... !!!
है तिरा हुस्न - ऐ - रफी* जलवाफरोशी
सर झुकाया क्या मिला दीन - ओ - जबर* तक ..... !!!
सुन उफक* में यूँ न इतरा इस शहर में
इक सफर है ये ज़फर से ले ज़रर* तक ............ !!!
ढल रही होगी कहीं मय तजकिरा* में
साक़िया क्या साथ देगी यूँ उमर तक ............. !!!
खोजता हूँ इस जहाँ में पाक रिश्ता
डब - डबाती ही रही आंखें बसर* तक .............. !!!
इक खुशी है मर गई तो क्या नया है
आसमां भी घट रहा है उस कमर* तक .......... !!!
ख़ाक के पुतले सभी हैं पैकरों* में
राख ही होंगे यहाँ अफरात - जर* तक ........... !!!
था बड़ा वाइज़* बना तू होश अब कर
कैफियत रख बस कि "नादां" पी नज़र तक ..... !!!
उत्पल कान्त मिश्र "नादां"
दिल्ली
* सहर: तक
तिश्नकामी: प्यास
रवायत - ओ - अनासिर: जिंदगी के नियम
पेंच - ओ - ख़म: अदाएँ
हुस्न - ऐ - रफी: चढ़ता हुआ हुस्न
दीन - ओ - जबर: राजा और रंक
उफक: शिखर (जीवन कि बुलंदियाँ)
ज़रर: कमजोरी
तजकिरा: चर्चा
बसर: उम्र
कमर: चाँद
पैकरों: शरीर
अफरात - जर: सोने जवाहरात
वाइज़: विद्वान्
YuuN ke bas peetaa chalaa Ghalib sahar तक
tishNakaamii hi mili phir sar – b – sar tak ………!!
dekhiye sab hai rawaayat – o – anaasir
neeNd main hi kat chalii manzil shahar tak ……… !!
pench – o – kam, husn, ulfat aur muhabbat
julf yah apni Na jhatko kamar tak ………………… !!
hai teraa husn – e – rafii jalwaafaroshii
sar jhukaayaa kyaa milaa deen – o – zabar tak ……!!
sun ufaq main yuun naa itraa is shahar main
ik safar hai ye zafar se le zarar tak ……………….!!
dhal rahi hogii kahin may tazkiraa main
saakiyaa kyaa saath degii yuun umar tak …………!!
khojtaa hoon is jahaN maiN paak rishtaa
dab – dabatii hii rahii aankhaiN basar tak ………… !!
ik khushii hai mar gayii to kyaa nayaa hai
aasmaaN bhi ghat raha hai us qmar tak …………… !!
khaak ke putle sabhii haiN paikaroN main
raakh hi honge yahaN afraat – Zar tak ……………!!
thaa badaa waaiz banaa tu hosh ab kar
kaifiyat rakh bas ke “NadaaN” pee nazar tak ……… !!
Utpal Kant Mishra “NadaaN”
Delhi .
10 टिप्पणियां:
behad umdah ............aik aik sher dil main utar gayaa ........aise hi likhte rahe.n
खोजता हूँ इस जहाँ में पाक रिश्ता
डब - डबाती ही रही आंखें बसर* तक ..
Bahut Ghalibana Andaaz hai _padh kar accha laga !
anil ji .....
bshaq ............ koshish karoonga ki aisai hi likhataa rah sakoon
Varshaa Jii ....
Andaz ka to pata nahin .... dil nain jo theek samjhaa likha diyaa .... haan itnaa hai ki "Arooza" ka khyaal rakhaa hai hai ...
ek se badhkar ek sher likhe hain aapne..I second Anil ji..
Didi ....... aap jaisaa kaho sohi sahi .... maan liyaa :p
यूँ कि बस पीता चला ग़ालिब सहर* तक
तिश्नकामी* ही मिली फिर सर - बसर तक ...... !!!
sudar abhivyakti aur prabhaavshaali rachna ..bahut umda prastuti , sabhi sher ek se badhker ek
उत्पल जी धन्य भाग जो आपने हौसला_अफजाई की .
आपकी ग़ज़ल पढ़कर नि:शब्द हो हूँ तारीफ़ मुमकिन नहीं
खोजता हूँ इस जहाँ में पाक रिश्ता
डब - डबाती ही रही आंखें बसर* तक .............. !!!
इक खुशी है मर गई तो क्या नया है
आसमां भी घट रहा है उस कमर* तक .......... !!!
काव्य में ज़बरदस्त असर है
बार बार पढने को मन करता है
इस अनुपम कृति के लिए
अभिनन्दन स्वीकारें .
निर्झर'नीर जी , अमरेन्द्र जी, दानिश जी
आप सबों की हौसला आफजाई से मैं धन्य हुआ ..... और आप सबों का आभारी हूँ की आपनें अपना समय इस तिफ्ल की रचना को दिया !
मेरे पास शब्द नहीं है जिससे आपका शुक्रिया अदा कर सकूं ! कोशिश करूंगा की कुछ पढनें लायक क्र्तियाँ रच सकूं औएर माँ सरस्वती से आशीर्वाद की प्राथना करते हुए एक रचना आपके सम्मुख रखनें की घृष्टता करता हूँ !
आपसे अनुरोध है की मेरी रचनाओं पर यदा कदा समय दें और अपनें बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं से मेरा मार्गदर्शन करते रहें !
सादर
उत्पल कान्त मिश्र "नादाँ"
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