शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

अजीब शख्श था













अजीब शख्श था
बाल बिखरे
बढ़ी दाढ़ी
और उनसे झांकते चंद सफ़ेद बाल
धूल सनें कपडे
धंसी हुई आंखें
और उनसे झांकते बिखरे ख्वाब !!

अजीब शख्श था
मिट्टी कुरेदता
देखता , सोचता
जैसे अपना अस्तित्व ढूंढता हो
खाली आँखों से
आसमान को ताकता
जैसे सूरज से कुछ पूछ रहा हो !!

अजीब शख्श था
हंसता भी था
रोता भी था
आती जाती गाड़ियों से बेखबर
पेशानी पे भाव
कई तरह के
और चेहरा सपाट , भाव हीन !!

अजीब शख्श था
मैं रुक गया
और पूछने गया
कहनें लगा, चीथरे ढूंढता हूँ
अपनें बच्चों के
और अपनें बचपन के
यहीं कहीं थे
और फिर कुरेदने लगा मिट्टी !!

अजीब शख्श था ........................... !!

उत्पल कान्त मिश्र
३०/०९/२०११ , मुंबई

4 टिप्‍पणियां:

Vishal Kataria ने कहा…

Ajeeb duniya hai. Koi karodon kamaakar bhi rota hai, aur kissi ko rozi roti nahin mitli, toh bhi uski zindagi chalti rehti hai.

उत्पल कान्त मिश्रा "नादां" ने कहा…

isliye ise duniyaa kahte hain Vishal :)

NumaN Mishra ने कहा…

Azeeb sakhs hun khud ko jalana chahta hoon main khud ko rakh ke kahin bhool, jaaan achahta hoon.............. Numan MIshra bolega toh laazwab hai utpal kant Mishra jee!! (BQ) agar bolein tohh mazzaa aagais marde hilaa dehla , oese e chacha hai kaun?

उत्पल कान्त मिश्रा "नादां" ने कहा…

ae ho BQ bhai .... e chaha google par milal hatun .... chinha ta na heau lekin har 3ser aadmi aisanian dikha hawa ... hai ki naa bhaiwaa